नहीं रहूँ लाचार
हुँकार आज मैं भरता हूँ
आये विपदा अपरम्पार
मैं कहाँ किसी से डरता हूँ
आयें कितनी पगबाधा
मैं लांघ सभी को बढ़ता हूँ
प्रबल मन का यह प्रचार
आज कर्म भूमि से करता हूँ
विश्व शांति की इक गुहार
मैं रोज़ लगाये अड़ता हूँ
दृढनिश्चय का प्रबल प्रहार
मैं क्षण क्षण भर में करता हूँ
पाप और अभिमान भरी
मैं उन आँखों में गड़ता हूँ
अगर कभी साहस छूटे
तो देख मुझे मैं दृढ़ता हूँ
राष्ट्र धर्मं की ध्वजा लिए
मैं जन्मभूमि पर बढ़ता हूँ
माँ आंच न तुझपर आने दूंगा
हुँकार आज मैं भरता हूँ
5 comments:
बहुत सुन्दर रचना है राजेश!
Dhanyawaad Animesh :)
Mast hai Bhai...
Thanks Paaji :)
Accha laga Rajesh... Iss par aage bhi likhna..
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