Wednesday, February 18, 2009

उड़ चला मैं

उड़ चला मैं
उमंग थी पर लगाने की
चाह थी कुछ कर गुज़र जाने की
ऐसी कुछ उड़ानों की कसक लिए
उड़ चला मैं

दूर कहीं वो बैठी होगी
अन्जान इन पथ की कठिनाईयों से
आज ऐसी टीस उठी है दिल में
कि मिल आऊँ उससे क्षण भर को
सो उड़ चला मैं

इस जीवन में उद्देश्य कई थे
संचय करता अरमानो का
अज्ञात दिशा की उमंग लिए
उस हीरे की प्यास लिए
उड़ चला मैं

दूर कहीं है चलना
बाधाओं के परिपक्व होने से पहले
काश उसकी सूरत का दीदार हो
उस खुदा से पहले
अरमानो के भूचाल लिए
उड़ चला मैं

क्या वो करती होगी मेरा इंतज़ार
क्या होगा उसे मुझ जैसा प्यार
इन दुविधाओं की गाँठ लिए
उड़ चला मैं

अभी मीलों का सफर है तय करना
इस काया की मंशा में है और लौह भरना
परिणामों की चिंता से अनभिज्ञ
उड़ चला मैं

हाथ लिए अरमानो की वरमाला
कर निश्चय पीने हलाहल प्याला
आज उठा मैं गहराई की धरातल से
पंख लगा आशाओं के
उड़ चला मैं

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