उड़ चला मैं
उमंग थी पर लगाने की
चाह थी कुछ कर गुज़र जाने की
ऐसी कुछ उड़ानों की कसक लिए
उड़ चला मैं
दूर कहीं वो बैठी होगी
अन्जान इन पथ की कठिनाईयों से
आज ऐसी टीस उठी है दिल में
कि मिल आऊँ उससे क्षण भर को
सो उड़ चला मैं
इस जीवन में उद्देश्य कई थे
संचय करता अरमानो का
अज्ञात दिशा की उमंग लिए
उस हीरे की प्यास लिए
उड़ चला मैं
दूर कहीं है चलना
बाधाओं के परिपक्व होने से पहले
काश उसकी सूरत का दीदार हो
उस खुदा से पहले
अरमानो के भूचाल लिए
उड़ चला मैं
क्या वो करती होगी मेरा इंतज़ार
क्या होगा उसे मुझ जैसा प्यार
इन दुविधाओं की गाँठ लिए
उड़ चला मैं
अभी मीलों का सफर है तय करना
इस काया की मंशा में है और लौह भरना
परिणामों की चिंता से अनभिज्ञ
उड़ चला मैं
हाथ लिए अरमानो की वरमाला
कर निश्चय पीने हलाहल प्याला
आज उठा मैं गहराई की धरातल से
पंख लगा आशाओं के
उड़ चला मैं
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