नही है आग राह की
कहाँ गई क्यूँ हुआ
यह मन हुआ विरक्त सा
गायब कहाँ जुनूं हुआ
समर्थ मन डरा हुआ
है आज क्यूँ थका हुआ
आशाओं के द्वंद से
भयभीत सा मरा हुआ
प्रकृति के प्रताप में
है हौसला थका हुआ
प्यार के आवेश में
सना हुआ पका हुआ
जले हुए दरख्त सा
अरमानो तले दबा हुआ
मोह माया प्रेमजाल
पकड़ा हुआ खड़ा हुआ
प्यार के आगाज़ से
बना हुआ मापा हुआ
उन्ही के मापतोल में
निरंतर लगा रहा
कुंठा भरी समाज से
जुड़ा रहा बना रहा
है वक्त आज शोर का
खड़ा कहाँ तत्पर हुआ
नही कभी यकीं कर
कौन है कहाँ गया
आज वक्त आ रहा
तू सूर्य है प्रकट हुआ
समाज तो कुटिल रहा
सदा यहाँ यहीं रहा
तू पथिक है राम का
आज से संवर रहा !
कहाँ गई क्यूँ हुआ
यह मन हुआ विरक्त सा
गायब कहाँ जुनूं हुआ
समर्थ मन डरा हुआ
है आज क्यूँ थका हुआ
आशाओं के द्वंद से
भयभीत सा मरा हुआ
प्रकृति के प्रताप में
है हौसला थका हुआ
प्यार के आवेश में
सना हुआ पका हुआ
जले हुए दरख्त सा
अरमानो तले दबा हुआ
मोह माया प्रेमजाल
पकड़ा हुआ खड़ा हुआ
प्यार के आगाज़ से
बना हुआ मापा हुआ
उन्ही के मापतोल में
निरंतर लगा रहा
कुंठा भरी समाज से
जुड़ा रहा बना रहा
है वक्त आज शोर का
खड़ा कहाँ तत्पर हुआ
नही कभी यकीं कर
कौन है कहाँ गया
आज वक्त आ रहा
तू सूर्य है प्रकट हुआ
समाज तो कुटिल रहा
सदा यहाँ यहीं रहा
तू पथिक है राम का
आज से संवर रहा !
1 comment:
मामा, कुछ मेरे लिए लिखो
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